शराबबंदी का ज्वलंत मुद्दा चुनाव में धरा रह गया


रिपोर्टर विश्वास सिंह पंवार। 
बदनावर। प्रदेश में पिछले कई महीनों से उमड़ घुमड़ रहे शराबबंदी की  मांग का मुद्दा इस बार विधानसभा चुनाव के दौरान प्रदेश के किसी भी कोने से नहीं उठ पाया। जबकि यह मुद्दा प्रदेश की आधी आबादी को प्रभावित कर रहा है और बदहाल कानून व्यवस्था की स्थिति व महिला अत्याचारों के मामलों में इसे ही जिम्मेदार ठहराया जाता है।
      इसी के साथ प्रदेश स्तर के कई अन्य ज्वलंत मुद्दे भी गौण हो गए और उनकी जगह स्थानीय मुद्दे एकाएक उभर कर सामने आ गए। जबकि शराबबंदी को लेकर यदि भाजपा व कांग्रेस में से जो भी पार्टी घोषणा करती तो उसे महिला वर्ग का अप्रत्याशित समर्थन मिलता पर ऐसा करने की हिम्मत कोई पार्टी नहीं दिखा सकी। किसी ने भी शराब से मिलने वाले करोड़ों रुपए के राजस्व को छोड़ने की हिम्मत नहीं दिखाई। शराबबंदी को लेकर समय-समय पर आंदोलन करने वाले महिला संगठनों ने भी चुनाव के समय मौन साधे रखा और किसी भी स्तर पर यह मांग नहीं उठाई।
     जबकि यह माना जा रहा था कि यदि जो भी पार्टी शराबबंदी लागू करने की मांग अपने चुनाव घोषणापत्र में शामिल करती तो चुनाव में उसे बड़ी तादाद में महिला वर्ग के वोट मिलते और उसकी जीत में यह मुद्दा प्रभावी रूप से शामिल होता। यह बात किसी से छुपी नहीं है कि शराबखोरी के कारण प्रदेश भर में गरीब वर्ग की माली हालत बुरी तरह प्रभावित है और अपराधों अत्याचारों के मामलों में भी शराब के कारण ही यह प्रदेश पूरे देश में चर्चित है।
     गरीब तबके की स्वास्थ्यगत की स्थिति भी शराब के कारण ही बिगड़ी हुई है और घर परिवार का सामाजिक तानाबाना भी इसी गंभीर सामाजिक बुराई के चलते लड़खड़ाया हुआ है। जब भी इस बारे में आंदोलन खड़े होते हैं तो इस तरह की ढेरों परेशानियां मुखर होती है पर कुछ दिन बाद ही शराबबंदी के पक्ष में चलाए जाने वाले आंदोलन ठंडे पड़ जाते हैं।
      हालांकि चुनाव से पहले इस बार भी लोगों को उम्मीद थी कि चुनाव मैदान में उतरी विभिन्न पार्टियों के घोषणापत्र में कोई न कोई पार्टी इस बारे में अवश्य ऐलान करेगी किंतु किसी ने भी यह जज्बा नहीं दिखाया और न ही मतदाताओं को आश्वस्त किया कि किसी न किसी तरह समयबद्ध रूप से शराबबंदी को लागू करने या पियक्कड़ों को निरुत्साहित करने का शासकीय या  सामाजिक स्तर पर ठोस प्रयास किया जाएगा।
      किंतु हुआ इसका ठीक उलटा। जब मतदान से आठ दिन पहले विभिन्न दलों के उम्मीदवारों के समर्थको में दबे छुपे रूप में गरीब वर्ग के मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए हर बार की तरह इस बार भी देशी विदेशी शराब बांटने की खबरे बराबर चर्चा में रही। बदनावर क्षेत्र में तो शराब का परिवहन करते हुए कोई व्यक्ति नही पकड़ा गया पर प्रदेशभर से रिकार्ड तोड़ मात्रा में शराब जप्ती की खबरे आती रही।
      यह मुद्दा अब 5 साल के लिए ठंडे बस्ते में चला गया है और कोई भी आने वाली नई सरकार एकाएक इस मुद्दे को छेड़ने की हिम्मत नहीं करेगी क्योंकि प्रदेश की लड़खड़ाई हुई माली हालत को और गड्ढे में डालने के लिए तैयार नहीं होगी। इसी के साथ गरीब वर्ग की आधी आबादी को शराबी पुरुष वर्ग के जुल्मों सितम झेलने जलने के लिए मानसिक व शारीरिक रूप से तैयार रहना होगा जैसा कि बरसों से महिलाएं शराबियों के अपराधौं व अत्याचारों को झेल रही है। चुनाव के समय उम्मीद की दिखाई देने वाली धुंधली किरणे भी अब अंधेरे में गुम हो गई है और महिलाओं की तमाम उम्मीदों पर एक बार फिर पानी फिर गया है।
Share To:

Post A Comment:

0 comments so far,add yours